राजस्थान जिला दर्शन : ‘जोधपुर जिला दर्शन’
‘थार मरुस्थल का प्रवेशद्वार’ एवं ‘सूर्य नगरी’ के उपनाम से प्रसिद्ध जोधपुर शहर की स्थापना 1459 ईस्वी में राठौड़ शासक राव जोधा ने की थी। जोधपुर में मेहरानगढ़ दुर्ग जिसे जोधपुर दुर्ग भी कहा जाता है, का निर्माण भी 1459 ईसवी में चिड़िया टूंक पहाड़ी पर करवाया गया था। इसी पहाड़ी के पास वर्तमान जोधपुर शहर बसाया गया एवं इसे अपनी राजधानी बनाया गया। जोधपुर में 1814 ईसवी में नगर परिषद बनी। जोधपुर का क्षेत्रफल : 22850 वर्ग किलोमीटर हैं।

जोधपुर जिले के उपनाम/प्राचीन नाम
- मारवाड़
- मरुधर
- थार मरुस्थल का प्रवेश द्वार
- सूर्य नगरी (Sun City)
- मरुवाड़
- मरुकांतार प्रदेश
- राजस्थान की ब्ल्यूसिटी
जोधपुर जिले की अक्षांशीय/देशांतरीय स्थिति
- अक्षांशीय स्थिति : 26 डिग्री उत्तरी अक्षांश 27 डिग्री 37 मिनट उत्तरी अक्षांश तक।
- देशांतरीय स्थिति : 72 डिग्री 55 मिनट पूर्वी देशांतर से 73 डिग्री 52 मिनट पूर्वी देशांतर तक।
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2011 की जनगणना के आंकड़े
- जोधपुर की कुल जनसँख्या : 36,87,165
- जोधपुर में जनसँख्या घनत्व : 161
- जोधपुर का लिंगानुपात : 916
- जोधपुर की साक्षरता दर : 65.94 प्रतिशत
जोधपुर जिले के प्रमुख मेले और त्यौहार
- नाग पंचमी का मेला – यह मेला मंडोर (जोधपुर) में भादवा सुदी पंचम को भरता है।
- धींगागवर बेतमार मेला – यह मेला जोधपुर में वैशाख कृष्ण तृतीया को भरता है।
- वीरपुरी का मेला – यह मेला मंडोर (जोधपुर) में श्रावण मास के अंतिम सोमवार को भरता है।
- बाबा रामदेव जी का मेला – बाबा रामदेव जी का यह मेला मसूरिया (जोधपुर) में भादवा सुदी दूज को भरता है।
- फलौदी मेला – यह मेला फलोदी (जोधपुर) में माघ सुदी नवमी को भरता है।
- कापरड़ा पशु मेला – यह मेला कापरड़ा (जोधपुर) में पौष सुदी 8 से 13 तक भरता है।
- खेजड़ी वृक्ष मेला – यह मेला जोधपुर के खेजड़ली में भादवा शुक्ला दशमी को आयोजित होता है।
- पाबूजी का मेला – कोलू गांव (फलोदी, जोधपुर) में चैत्र अमावस्या को भरता है।
- चामुंडा माता का मेला – इनके मंदिर में आश्विन शुक्ल नवमी को जोधपुर दुर्ग में एक प्रसिद्ध मेला लगता है।
जोधपुर के प्रमुख मंदिर | जोधपुर के शीर्ष मंदिर
- सच्चियाँ माता का मंदिर, ओसियां – ओसिया (जोधपुर) में स्थित सच्चियाँ माता के इस मंदिर में माता की पूजा हिंदुओं और ओसवालों द्वारा समान रूप से की जाती है। सचियां माता का मंदिर महिषमर्दिनी की सजीव प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध है।
- अधरशिला रामदेव मंदिर – यह मंदिर जालोरिया का बास, जोधपुर में एक सीधी चट्टान पर स्थित है। यह मंदिर बाबा रामदेव का मंदिर है।
- महामंदिर, जोधपुर – जोधपुर का यह महामंदिर नाथ सम्प्रदाय का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। इसका निर्माण 1812 ईसवी में जोधपुर नरेश महाराजा मानसिंह द्वारा करवाया गया था। यह मंदिर 84 खंभों पर निर्मित है। इसलिए यह पर्यटन की दृष्टि से बहुत ही आकर्षक मंदिर है।
- संबोधीधाम, जोधपुर – कायलाना झील के पास जोधपुर में स्थित इस धाम का निर्माण जैन धर्मावलंबियों द्वारा करवाया गया था।
जोधपुर जिले के दर्शनीय स्थल/पर्यटन स्थल
- खींचन गांव, जोधपुर – जोधपुर के फलौदी के पास स्थित खींचन गांव डेमोसिल क्रेन (आप्रवासी कुरजाँ) पक्षियों के लिए बहुत ही प्रसिद्ध है।
- फलौदी (जोधपुर) – फलौदी के निकट बाप क्षेत्र (जोधपुर) नमक उत्पादन के लिए जाना जाता है , जहां पर निजी क्षेत्र का कारखाना है।
- मेहरानगढ़ दुर्ग – मेहरानगढ़ दुर्ग का निर्माण 1459 ईस्वी में राव जोधा ने करवाया था। इस दुर्ग की नींव का पत्थर करणी माता (रिद्धि बाई) ने रखा था। मेहरानगढ़ दुर्ग के उपनाम – सूर्यगढ़, चिड़िया टूंक दुर्ग, मयूरध्वजगढ़, गढ़ चिंतामणि, कागमुखी आदि। इस दुर्ग में प्रमुख दर्शनीय स्थल – चामुंडा माता का मंदिर, सूरी मस्जिद, भूरे खां की मजार, मानप्रकाश पुस्तकालय, कीरत सिंह एवं धन्ना की छतरियां, फूलमहल, मोतीमहल, जहूर खान की मजार आदि। इस दुर्ग में गजनी खां, शंभूबाण तथा किलकिला नामक 3 तोपे पर रखी हुई है। इस दुर्ग के बारे में रुडयार्ड क्लिपिंग ने कहा “इसका निर्माण शायद परियों व फरिस्तों ने किया है”। मेहरानगढ़ दुर्ग का शाही पुस्तकालय ‘पुस्तक प्रकाश’ भवन के नाम से जाना जाता है।
- उम्मेद भवन/छीतर पैलेस – इसका निर्माण 1929 ईस्वी में उम्मेदसिंह ने अकाल राहत के लिए करवाया था। यह यूनानी/इटैलिक एवं गैथिक शैली/इंडो सरासैनिक में बना हुआ है।
- जसवंत थड़ा – जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह द्वितीय की याद में उनके उत्तराधिकारी राजा सरदार सिंह द्वारा 1906 निर्मित यह शाही स्मारक सफेद संगमरमर से बना हुआ है। इसे राजस्थान का ताजमहल भी कहा जाता है।
- अरना-झरना – जोधपुर में स्थित यह एक प्राकृतिक जलप्रपात है।
- एक थम्बा महल – इसे प्रहरी मीनार भी कहा जाता है। इसका निर्माण अजित सिंह ने बनाया था।
- राजस्थान उच्च न्यायालय – राजस्थान उच्च न्यायालय के भवन का निर्माण 1935 ईस्वी में इंग्लैंड के राजा जॉर्ज पंचम के शासनकाल की रजत जयंती की स्मृति में जोधपुर नरेश उमेदसिंह द्वारा करवाया गया था।
- चौखा महल – यह मारवाड़ चित्र शैली एवं जन-जीवन के चित्रों की अभिव्यक्ति के लिए प्रसिद्ध है।
- बुलानी महल – यह महल वर्तमान में एक अस्पताल के रूप में संचालित है।
- मंडोर – यहां रावण ने मंदोदरी से विवाह किया (रावण की चंवरी/फेरे का मंडप) |
- रानी सूर्य कंवर की छतरी – यह 32 खम्भों की छतरी है।
- अखैराज सिंघवियों की छतरी – यह 20 खम्भों की छतरी हैं।
- पंचकुंड की छतरियां – मंडोर में यहां पर राठोड़ों की छतरियां स्थापित है। इसमें से सबसे पुराणी रावगांगा की छतरी है।
- प्रधानमंत्री राजसिंह चम्पावत की छतरी – जोधपुर के महाराजा जसवंतसिंह ने अपने प्रधानमंत्री राजसिंह चम्पावत की याद में 18 खम्भों की यह छतरी बनवाई थी।
- खेजड़ली, जोधपुर – यह गांव वृक्ष प्रेम के लिए पुरे विश्व में प्रसिद्ध है। यहां पर 1730 में जोधपुर नरेश अभयसिंह के समय अमृता देवी एवं साथियों ने वृक्षों को काटने से रोकने के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया था। इस गांव में शहीद स्मारक बना हुआ हैं।
- जोधपुर के अन्य पर्यटन स्थान – बिजोलाई के महल, फतेह महल, मोतीमहल, तख्तविलास, दौलतखाना तलहटी महल, फूलमहल, राइका बैग पैलेस, सूरसागर महल, इन्द्रराज सिंधी की छतरी, मामा-भांजा की छतरी, कागा की छतरी, गोरा धाय की छतरी आदि।
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जोधपुर की प्रमुख अकादमियां
- केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसन्धान – (CAZRI – Central Arid Zone Research Institute) जोधपुर जिले में है। इसकी स्थापना 1959 में जोधपुर में की गयी।
- शुष्क वन अनुसन्धान केंद्र – (AFRI – Arid Forest Research Institute ) इसकी स्थापना भी जोधपुर में 1985 में की गयी थी।
- राजस्थान संगीत नाटक अकादमी – इसकी स्थापना 1957 में जोधपुर में की गयी।
- रूपायन शोध संस्थान ( बोरून्दा ) – इसकी स्थापना 1960 में जोधपुर में की गयी। इसका कार्य राजस्थानी कला का संचय करना है।
- प्राविधिक शिक्षा निदेशालय – इसकी स्थापना 17 अगस्त, 1956 में जोधपुर में की गयी।
- राजस्थान प्राच्य विद्या संस्थान – इसकी स्थापना 1950-51 में जोधपुर में की गयी। यह राजस्थान का सबसे बड़ा पाण्डुलिपि भंडार ग्रह है।
- जोधपुर के अन्य सांस्कृतिक केंद्र एवं संसथान – राजस्थान ओरिएंटल अनुसन्धान संस्थान, सीमा सुरक्षा बल का फ्रंटियर मुख्यालय (जोधपुर में), मीरा बाई अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS), राजस्थान उच्च न्यायालय, राजस्थान शोध संस्थान, राष्ट्रीय कला मंडल।
जोधपुर में मीठे पानी की झीलें
- कायलाना झील (जोधपुर) – यह झील जोधपुर से लगभग 8 किलोमीटर पूर्व में है। यह झील शुरू में एक प्राकृतिक झील थी। इसको वर्तमान स्वरूप सर प्रताप सिंह ने 1872 में दिया था। इस झील से जोधपुर शहर को जलापूर्ति की जाती है। वर्तमान में इस झील में “राजीव गाँधी केनाल” का पानी आता है। माचिया सफारी पार्क भी कायलाना झील के किनारे स्थित है। इंडोलाई का तालाब जोधपुर जिले में स्थित है, जहां डोलोमाइट पाया जाता है। यही पर कागा की छतरियां है।
- बाल समंद झील (जोधपुर) – यह झील जोधपुर-मंडोर मार्ग पर जोधपुर में स्थित हैं। इसका निर्माण 1159 ईस्वी में परिहार शासक राव बाउक (बालक राव प्रतिहार) ने करवाया था। इस झील के बीच में महाराजा सुरसिंह ने अष्ट खम्भा महल का निर्माण करवाया था।
- सरदार समंद झील – इस झील का निर्माण महाराजा उम्मेदसिंह द्वारा जोधपुर जिले में करवाया गया।
जोधपुर जिले में प्रमुख विश्वविद्यालय
- डॉ. एस. राधाकृष्णन राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय – इसका निर्माण 2002 में करवड़ (जोधपुर) में किया गया। यह राजस्थान का प्रथम आयुर्वेद विश्वविद्यालय तथा भारत का दूसरा आयुर्वेद विश्वविद्यालय है। भारत का पहला आयुर्वेद विश्वविद्यालय जामनगर (गुजरात) में है।
- जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय – जोधपुर में इस विश्वविद्यालय की स्थापना 1962 की गयी। शुरुआत में इस विश्वविद्यालय का कार्यक्षेत्र जोधपुर शहर तक ही था लेकिन बाद में सिरोही को छोड़कर पुरे जोधपुर संभाग तक कार्यक्षेत्र हो गया। यह एक पूर्णत: आवासीय विश्व विद्यालय है।
- राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय – इसकी स्थापना 2001-02 में जोधपुर में की गयी। यह राजस्थान का प्रथम विधि विश्वविद्यालय है। इसके कुलाधिपति राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश होते है।
- जोधपुर में अन्य प्रमुख विश्वविद्यालय – सरदार पटेल पुलिस सुरक्षा एवं दाण्डिक न्याय विश्वविद्यालय, स्कुल ऑफ़ डेजर्ट साइंस, आईआईटी (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) का केंद्र, एनर्जी खनन और पेट्रोलियम विश्व विद्यालय, फुटवियर डिजाइन एवं डवलपमेंट इंस्टिट्यूट आदि प्रमुख विश्वविद्यालय हैं।
जोधपुर के प्रमुख जंतुआलय/मृगवन
- माचिया सफारी मृगवन – इसकी स्थापना 1985 में की गयी। यह मृगवन जोधपुर से 5 किलोमीटर दूर कायलाना झील के पास ही स्थापित है। इस पार्क में माचिया दुर्ग स्थित है। यहां पर राज्य एवं देश का प्रथम ‘राष्ट्रीय मरु वानस्पतिक उद्यान’ बनाया गया है।
- अमृता देव कृष्ण मृगवन – यह मृगवन खेजड़ली गांव (जोधपुर) में अमृता देवी के नाम पर स्थापित किया गया।
- जोधपुर जंतुआलय – इसकी स्थापना 1936 में जोधपुर में की गयी। यहां पर राजस्थान का राज्य पक्षी गोडावण का कृत्रिम प्रजनन केंद्र है।
जोधपुर की प्रमुख लोकदेवियाँ
- सचियां माता – यह ओसवालों की कुलदेवी है। इन्हें सांप्रदायिक सद्भाव की देवी भी कहा जाता है। इनके मंदिर का निर्माण प्रतिहार शैली में परमार राजकुमार उपलदेव ने 11 वीं शताब्दी में ओसियां (जोधपुर) में करवाया था।
- आई माता – इनका जन्म अंबापुर (गुजरात) में हुआ था। इनके बचपन का नाम जीजाबाई था। यह सीरवी जाति के क्षत्रियों की कुलदेवी हैं। इनका प्रसिद्ध मंदिर बिलाड़ा (जोधपुर) में है। आई माता के मंदिर को दरगाह भी कहा जाता है तथा इनके थान को बड़ेर कहते हैं। इनके मंदिर में मूर्ति नहीं है। इनके मंदिर में जलने वाले दीपक की ज्योति से केसर टपकती है।
- नागणेची माता – नागणेची माता राठौड़ वंश की कुलदेवी है। इनका प्रमुख मंदिर मंडोर (जोधपुर) में है। यह 18 भुजाधारी देवी है।
- लुटियाला/लटियाला माता – यह कल्लों की कुलदेवी हैं। इनका प्रमुख मंदिर फलोदी (जोधपुर) में है। इस मंदिर के आगे खेजड़ी वृक्ष स्थित है। इसलिए इन्हें ‘खेजड़ बेरी रेाय भवानी’ भी कहा जाता है।
- चामुंडा माता – मारवाड़ के राठोड़ों की इष्ट देवी हैं। इनका मंदिर मेहरानगढ़ (जोधपुर) में है।
जोधपुर के प्रमुख सम्प्रदाय
- रामस्नेही संप्रदाय की खेड़ापा शाखा – रामस्नेही संप्रदाय की खेड़ापा शाखा के संस्थापक रामदास जी थे।
- तेरापंथी संप्रदाय – जैन श्वेतांबर के तेरापंथी संप्रदाय के संस्थापक आचार्य भिक्षु स्वामी थे। जिनका जन्म कंटालिया गांव (जोधपुर) में हुआ था।
- माननाथी संप्रदाय – इसके प्रवर्तक नाथमुनि थे। इसके प्रधान पीठ महामंदिर (जोधपुर) में हैं। नाथपंथ के प्रथम गुरु गोरखनाथ थे।
जोधपुर के अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न/तथ्य
- बिरला व्हाइट सीमेंट उद्योग – इसकी स्थापना खारिया खंगार (भोपालगढ़) जोधपुर में की गयी। यह राजस्थान का सबसे बड़ा सफेद सीमेंट का कारखाना है।
- राजस्थान के जोधपुर जिले की आकृति मयूराकार है।
- विश्व का एकमात्र खेजड़ली वृक्ष मेला जोधपुर में भरता है।
- विश्व का सबसे बड़ा रिहायशी महल – ‘छीतर महल/उम्मेद भवन’ जोधपुर में है।
- जोधपुर चित्र शैली – जोधपुर चित्रकला शैली की विशेषताएं – रेत के टीले, कौए, चिंकारा, ऊँट, घोड़े,छोटी-छोटी झाड़ियां आदि का चित्रण। इस शैली का स्वर्णकाल मालदेव के शासनकाल में था। यह शैली नाथ सम्प्रदाय से सम्बंधित है। जोधपुर शैली के प्रमुख चित्रकार – देवदास, शिवदास, रामा, नाथा, छज्जू और सैफू आदि। जोधपुर लघु चित्रकला को हाथ से तैयार किया गया है। यह चित्रकला शैली ऊँट की पीठ पर ढोला और मरू जैसे प्रसिद्ध प्रेमियों के दृश्यों को दर्शाती है। मारवाड़ शैली में ‘रागमाला चित्रावली’ का चित्रांकन वीरजी ने 1623 ईस्वी में किया था।
- देश का प्रथम कोयला आधारित बिजली घर ‘बाप’ जोधपुर में है।
- भारत का प्रथम राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, ‘मण्डौर’ जोधपुर में है।
- देश का प्रथम मरु वानस्पतिक उद्यान (माचिया सफारी पार्क में) जोधपुर में है।
- भारत का प्रथम सौर ऊर्जा चलित फ्रिज ‘बालेसर’ जोधपुर में है।
- देश की प्रथम खजूर पौधशाला का निर्माण चौपासनी (जोधपुर) में है।
- देश का सबसे बड़ा पाण्डुलिपि भंडार ‘राजस्थान प्राच्य विद्या संसथान’ जोधपुर में है।
- जोधपुर की प्रमुख हस्तकलाएं – बादला (जस्ते से निर्मित ठन्डे पानी के बर्तन), मोजड़ियां, साफा, हाथी दांत की चूड़ियां, बंधेज का कार्य, चमड़े के बटवे, मलमल का कार्य (मथानियाँ गांव में), मोठड़ा (लुगदी पर किया हुआ कार्य) आदि।
- देश का पहला रेलवे मेडिकल कॉलेज जोधपुर में है।
- राजस्थान का पहला सरकारी डाकघर 1839 ईस्वी में जयपुर में है।
- राजस्थान में निजी क्षेत्र का प्रथम इनलैंड कंटेनर डीपो जोधपुर में है।
- राजस्थान का प्रथम हेरिटेज होटल, फ्लाइंग क्लब, जीरा मंडी, एयरफोर्स फ़्लाइंग कॉलेज, सूर्य उद्यान, आईआईटी केंद्र आदि जोधपुर में है।
- खंभाहीन शहर (Pole Less ) जोधपुर है।
- ई. पेशी से जुड़ने वाला पहला जिला जोधपुर जिला है।
- देश एवं राजस्थान का प्रथम ऑनलाइन जिला न्यायालय – जोधपुर जिला न्यायालय है।
- प्रथम स्पाईस (मसाला) पार्क रामपुरा भाटियान गांव (ओसियां) जोधपुर में है।
- उत्तरी भारत व राजस्थान में रावण का पहला मंदिर – मंडोर (जोधपुर) में है।
- राजस्थान में जीवों की रक्षार्थ पहला बलिदान 1604 ईस्वी में कर्मा एवं गौरा के नेतृत्व में रामासड़ी गांव (जोधपुर) में है।
- राजस्थान का सर्वाधिक ऊन उत्पादक जिला – जोधपुर जिला।
- राजस्थान का सर्वाधिक आखेट निषिद्ध क्षेत्र वाला जिला – जोधपुर जिला।
- राजस्थान में सर्वाधिक शुष्क स्थान – फलौदी (जोधपुर) है।
- जोधपुर जिला जोधपुर संभाग के अंतर्गत आता है। जोधपुर संभाग में इसके अलावा अन्य जिले – जैसलमेर, बाड़मेर, जालोर, सिरोही तथा पाली जिले है।
- जोधपुर के प्रमुख बांध एवं बावड़ियां – तख्तसागर, उम्मेदसागर, कातन बावड़ी (ओसियां), तापी बावड़ी, महिला बाग़ का झालरा (यहां महिलाओं द्वारा ‘लोटियों का मेला’ लगता है।
- लालमिर्च के लिए जोधपुर का मथानियां क्षेत्र प्रसिद्ध है।
- बादामी पत्थर जोधपुर जिले से प्राप्त होता है।
- मारवाड़ महोत्स्व – शरद पूर्णिमा (सितंबर-अक्टूबर) में जोधपुर में आयोजित होता है।
- मारवाड़ी भेद वंश का अनुसन्धान केंद्र जोधपुर जिले में है।
- गोमठ ऊँट वंश – ऊँट की यह नस्ल सवारी हेतु प्रसिद्ध है। यह नस्ल मुलत: फलौदी (जोधपुर) में पायी जाती है।
- मांगलिया मेहाजी – यह कामड़िया पंथ से दीक्षित थे। इनका मुख्य मंदिर बापनी (जोधपुर) में है। जहां पर प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को मेला भरता है। इनका घोडा ‘किरड़ काबरा’ है।
- तल्लीनाथजी – इनका जन्म शेरगढ़ (जोधपुर) में हुआ था। इनका वास्तविक नाम गांगदेव राठौड़ था। इनके भाई – रावचूड़ा, पिता – वीरमदेव, गुरु – जालंधर नाथ थे। तल्लीनाथजी जालोर क्षेत्र के लोकदेवता है। इनका जालोर के पांचोटा गांव में पंचमुखी पहाड़ी पर पूजा स्थल है।
- रुपनाथजी – ये पाबूजी के भतीजे थे। इनका जन्म जोधपुर के कोलू गांव हुआ था। इनकी हिमाचल प्रदेश में बालकनाथ के रूप में पूजा की जाती है। कोलुमण्ड (जोधपुर) में इनका प्रमुख थान है।
- जोधपुर की मस्जिदे/दरगाह/मकबरे – गुलाब खां, इक मीनार मस्जिद, सूरी मस्जिद, गूलर कालूदान की मीनार(मेहरानगढ़ दुर्ग में), गुलाब कलंदर का मकबरा, गमता गाजी मीनार, भूरे खां की मजार, तना पीर की दरगाह (मंडोर) |
- जोधपुर की प्रमुख हवेलियां – राखी हवेली, पुष्य हवेली, पोकरण हवेली, पच्चीसां, बड़े मियां की हवेली।
- जोधपुर के रियासत कालीन सिक्के – भीमशाही सिक्के, विजयशाही सिक्के, लल्लुलिया सिक्के, गधिया सिक्के, फदिया सिक्के, ढब्बुशाही सिक्के आदि।
- मारवाड़ किसान आंदोलन – चांदमल सुराणा व जयनारायण व्यास के नेतृत्व में मादा पशुओं के निष्कासन व तोल के विरुद्ध हुआ था।
- मारवाड़ प्रजामण्डल – 1934 ईस्वी में जोधपुर में मारवाड़ प्रजामण्डल की स्थापना जयनारायण व्यास ने की थी तथा इसकी अध्यक्ष भंवरलाल सर्राफ बने।
- मारवाड़ लोक परिषद – इसका गठन 1938 ईस्वी में सुभाष चंद्र बोस ने किया था। इसके बाद में इसका नेतृत्व जयनारायण व्यास को सौपा। इसका मुख्य उद्देश्य महाराज की छत्र-छाया में उत्तरदायी शासन की स्थापना करना था।